पीएम मोदी ने जिस Y2K संकट का जिक्र किया, क्या है Y2K, जानिए यहां

कोरोना वायरस लॉकजाउन के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने लॉकडाउन-4 के संकेत दिए और कई बातें बताईं. इस दौरान उन्होंने एक दिलचस्प तथ्य सामने रखा. कहा-आज पूरी दुनिया को भरोसा है कि भारत मानव जाति के लिए कुछ अच्छा कर सकता है. इस सदी की शुरुआत में जब Y2K क्राइसिस सामने आया था, तब भी भारत के IT  शोधकर्ताओं  ने ही दुनिया को इससे निकालने में मदद की थी.


आखिर क्या था Y2K
इस शब्द Y2K ने एक बार फिर दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर दिया. दरसअल यह कम्प्यूटर तकनीकि की दुनिया में आया सबसे बड़ा संकट था. दुनिया 20वीं सदी से 21वीं सदी में प्रवेश कर रही थी. इसी समय यह मामला सामने आया  जिससे लगने लगा कि पूरी दुनिया में कंप्यूटर संचार तंत्र प्रभावित हो जाएगा और कंप्यूटर खत्म हो जाएंगे. इसकी वजह था यही Y2K (वाई 2के बग). दरअसल माजरा इतना था कि सदी समाप्त होने के बाद कम्प्यूटर की तारीख में बदलाव न होने की समस्या थी और इससे व्यापार, तकनीक, अनुसंधान सभी क्षेत्रों को बड़ा नुकसान था. 


पहले समझते हैं, क्या है Y2K


वाई 2के’ का वाई साल (ईयर) को प्रदर्शित करता है, तो वहीं 2के 2000 को. इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटिंग के प्रारंभिक दौर के बाद, लगभग पूरी दुनिया में कंप्यूटर सिस्टम में साल को प्रदर्शित करने के लिए 4 की जगह पर 2 अंकों का प्रयोग ही होता था.



सन 1999 खत्म होकर 2000 की शुरुआत होने वाली थी, लेकिन दुनियाभर के कंप्यूटर सिस्टम 31 दिसंबर, 1999 से आगे का साल बदल पाने में सक्षम नहीं थे.


तारीख 100 साल पीछे की दर्ज होती
सिस्टम अगले साल के लिए तारीख और महीना बदल सकते थे, लेकिन साल के दो आखिरी अंकों को छोड़कर पहले अंक नहीं बदले जा सकते थे और इस तरह से एक जनवरी 2000 को कंप्यूटरों में दिखने वाली तारीख 01/01/1900 ही रहती. यानी कि समय से ठीक 100 साल पीछे. इस कारण ‘वाई 2के’ बग को ‘मिलेनियम बग’ भी कहा जाता है, जो एक प्रकार की कंप्यूटर कोडिंग की खराबी थी.


अमेरिका-यूरोप में बड़ा था संकट
अमेरिका में तमाम कंप्यूटर गणनाएं महीना-दिन-साल (MM-DD-YY) के प्रारूप में तय की गई थीं. साल केवल दो अंकों में था, इसलिए 1999 के बाद जब सन 2000 आया तो सभी तारीकों में बदलाव के साथ 01-01-00 तो हो जातीं, लेकिन कंप्यूटर से जुड़ी सभी सेवाएं ठीक 100 साल पीछे चली जाती 


उस दौर में कई कंप्यूटर विशेषज्ञों ने कहा था कि कंप्यूटर में 21वीं सदी के लिए पर्याप्त प्रोग्राम नहीं हैं, इसलिए वे ध्वस्त हो सकते हैं. बहुत सारे कंप्यूटर कार्यक्रम जिन पर अर्थव्यवस्था निर्भर थी, वह सब फेल होने वाले थे.


ये हो सकते थे नुकसान
इन दोनों ही महाशक्तियों वाले देश में प्रणालियां कम्प्यूटर तकनीक पर आधारित हो चुकी थीं. बैंक चेक या ट्रांसफर करने में और सरकारें अपने रोजमर्रा के काम करने में असमर्थ हो सकती थीं. पावर ग्रिड फेल हो जाते और उन पर निर्भर सभी सेवाएं बाधित हो सकती थीं, यहां तक की नेविगेशन उपग्रह आदि का संचालन भी ठप पड़ सकता था. 


सबकी निगाहें भारत की ओर पड़ी
विश्वगुरु भारत में, उस समय तक इंफोसिस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियों की शुरूआत हो चुकी थी. जो आईटी के सक्षम मानव संसाधन को दुनियाभर में खपाने के लिए तैयार थीं, उनके पास संसार का सबसे बेहतर प्रतिभाओं का भंडार था. यही कारण था कि ऐसे समय में अमेरिका और यूरोप की कंपनियों का ध्यान भारत की ओर गया.


भारत के हुनरमंद युवाओं ने भी इनको निराश नहीं किया और दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया.


भारत ने तकनीक के क्षेत्र में टेकऑफ किया
इंफोसिस की तरह ही आईआईएस इन्फोटेक उन 100 से ज्यादा भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक थी, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वाई 2के बग को ठीक करने के काम में जुटी हुई थीं. इसके बाद तो भारत की टेक कंपनियों ने ऊंची उड़ान भरी और यहां के तकनीक छात्रों का लोहा माना जाने लगा.



1999 से शुरु हुआ भारत का आईटी और सेवा निर्यात 2010 तक तमाम भविष्यवाणियों को तोड़ते हुए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया.


फिर भारत ने ऐसे सुलझाई समस्या
आईआईएस ने सॉफ़्टवेयर को Y2K के अनुरूप बनाने के लिए कोड को फिर से लिखा. आईआईएस इन्फोटेक ने अपने विदेशी ग्राहकों की एक ब्लूचिप सूची बनाई, जिसमें सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस, जी.ई. और प्रुडेंशियल जैसी बड़ी अमेरिकन कंपनियां शामिल थीं.



अधिकांश उन्नत देशों में 20वीं सदी से 21वीं सदी के बदलते दौर और ‘वाई 2के’ बग समस्या को ठीक करने के लिए भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों की मदद ली गई. भारत इसके बाद एक बड़ी आईटी शक्ति बनकर उभरा और अपना परचम लहराया. 

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