लॉकडाउन में उलझा... भारत
भारत शायद 1 जुलाई से पहले ही कोरोना की वैक्सीन पाने में सफल हो जाएगा और सब कुछ पहले जैसा समान्य हो जाएगा। और शायद हर भारतीय यही कामना करता है,
पर जिस तरीके से मौजूदा स्थिति में भारत सरकार और राज्य सरकारें अपना लॉक डाउन पर फैसला ले रही है उससे तो यही लगता है कि शायद लोगों की जिंदगी अर्थव्यवस्था के आगे नतमस्तक है।
वैसे तो छात्र अर्थव्यवस्था के मामले में कोई भी योगदान नहीं देते हैं, परंतु जब बात उनके स्वास्थ्य की आती है तब हर किसी के लिए उनकी परीक्षाएं उनके स्वास्थ्य से उपर हो जाती हैं। पर अब हर किसी को स्कूल खोलना है मानो कि स्कूल में जाने से सब कुछ बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा, बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है पर असलियत में तो स्कूल के धंधे बंद हो गए हैं, कमाई का जरिया निकालना है,
वैसे तो छात्र अर्थव्यवस्था के मामले में कोई भी योगदान नहीं देते हैं, परंतु जब बात उनके स्वास्थ्य की आती है तब हर किसी के लिए उनकी परीक्षाएं उनके स्वास्थ्य से उपर हो जाती हैं। पर अब हर किसी को स्कूल खोलना है मानो कि स्कूल में जाने से सब कुछ बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा, बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है पर असलियत में तो स्कूल के धंधे बंद हो गए हैं, कमाई का जरिया निकालना है,
ऑनलाइन शिक्षा पद्धति एक नए विकल्प के रूप में आया है, परिवर्तन संसार का नियम है पर उसका समय भी ठीक होना चाहिए। अभी हम इतने सक्षम नहीं है और ना ही हर घर में इन्टरनेट है, और अगर है भी तो भैया नेटवर्क का डब्बा गोल है, तो इसके लिए तो हमें अभी कई चीजों पर ध्यान देना है तभी यह सम्भव हो पायेगा।
सरकार कहती है हमें positive सोचना चाहिए। अरे जनाब उनको कोई बताए सरकारी दफ्तरों से बोलना बहुत आसान है परंतु भूखे पेट और आसपास का corona से भरपूर माहौल, positive सोचने नहीं देता।
सरकार कहती है कि हमें अब corona के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए तो क्या अब देश के लगभग 9% बुजुर्गों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है। ये बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं इन्हें यूँ ही ना खोए।
सरकार आने वाले दिनों में ट्रेन, मेट्रो, बस इत्यादि को शुरू करने जा रही है और साथ ही यह भी कह रही है कि हमें सोशल distancing का पालन करते हुए यात्रा करनी है।
शायद वो भूल रही है हमारे देश की जनसंख्या इतनी है कि ये सोशल distancing मुमकिन ही नहीं है। और इसके अलावा हमारे पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं है जो हम हर किसी को उसकी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा सकें। यह बहुत ही चिंता का विषय है।
सरकार के सामने कई चुनौतियों हैं मगर इन्हीं चुनौतियां के लिए तो हमने उन्हें चुना है वर्ना गद्दी पर बैठने के लिए तो आदरणीय पप्पू जी भी काफी हैं।
मैं कामना करता हूं जल्द सब कुछ ठीक हो जाए, सब स्वस्थ रहें, आगे बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, और लिखूंगा भी पर अभी के लिए इतना पर्याप्त है, जाते जाते कुछ पक्तियों के माध्यम से अपनी बात कह रहा हूं कि -
किस किस को रोकोगे, किस किस को टोकोगे,
धैर्य, संयम और साहस बहुत जल्द खत्म हो जाएगा।
पता भी नहीं चलेगा और लोग एक दूसरे को काटने भी लगेंगे,
प्रेम, मानवता, भाई चारा केवल किताबों में रह जाएगा।।
धन्यवाद,
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं।
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